अर्थ:योत्स्यमानानवेक्षेऽहं य एतेऽत्र समागताः ।
धार्तराष्ट्रस्य दुर्बुद्धेर्युद्धे प्रियचिकीर्षवः ॥२३॥
मुझे उन लोगों को देखने दीजिये, जो यहाँ पर धृतराष्ट्र के दुर्बुद्धि पुत्र (दुर्योधन) को प्रसन्न करने की इच्छा से लड़ने के लिए आये हुए हैं।तात्पर्य:
यह सर्वविदित था कि दुर्योधन अपने पिता धृतराष्ट्र की साँठगाँठ से पापपूर्ण योजनाएँ बनाकर पाण्डवों के राज्य को हड़पना चाहता था। अत: जिन समस्त लोगों ने दुर्योधन का पक्ष ग्रहण किया था वे उसी के समानधर्मा रहे होंगे। अर्जुन युद्ध प्रारम्भ होने के पूर्व यह तो जान ही लेना चाहता था कि कौन-कौन से लोग आये हुए हैं। किन्तु उनके समक्ष समझौता का प्रस्ताव रखने की उसकी कोई योजना नहीं थी। यह भी तथ्य था कि वह उनकी शक्ति का, जिसका उसे सामना करना था, अनुमान लगाने की दृष्टि से उन्हें देखना चाह रहा था, यद्यपि उसे अपनी विजय का विश्वास था क्योंकि कृष्ण उसकी बगल में विराजमान थे।